Pagal Chat Par Khadi Thi

Pagal Chat Par Khadi Thi

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पागल छत पर खड़ी थी।
बाल खुले और बिखरे।
होठों से अजीब-अजीब आकृतियां बना रही थी।
कभी मुंह इधर, कभी उधर।
बार-बार सामने निहारती दीन-दुनिया से बेखबर।
मुझे बहुत दया आ रही थी।
इतनी कम उम्र में पागल होना।
पूरी जिंदगी पड़ी है।
क्या होगा?
कैसे होगा?
मुझे उसके पिता की चिंता सताने लगी।
बेचारा दिन रात मेहनत करके परिवार पालता है।
ऊपर से इस पागल लड़की को कैसे संभालेगा?
धीरे-धीरे पागलपन और बढ़ गया।
अब तो वह मुंडेर पर बैठ गई थी।
मैं घबराया।
मैंने अपनी बिटिया को बुलाया और अपनी चिंता से अवगत कराया।
बिटिया बोली
"पापा वो पागल नहीं है,
वो तो सेल्फी ले रही है।’

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